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Saturday, December 30, 2017

छोड़ के चले



हम बचपन नादान छोड़ के चले
पिताजी का बनाया पुराना मकान छोड़ के चले
लगा जब शौक जवानी में मुहब्बत का
हम हर मेहमान छोड़ के चले
रही आँखें उम्र दराज़ रास्तों में टिकी हुई
गली दर गली उसका मकान छोड़ के चले
किसी फ़कीर ने कहा था नेकी कर दरिया में डाल
हम हर सलाह-ए-जान छोड़ के चले
कुछ सामान रखा जेबों में
हम ज़िन्दगी का नफा नुक़सान छोड़ के चले
बुलाती रही अपने शहर की गलियाँ बहुत हमें
मगर अपनों को परेशान छोड़ के चले
एक धुन थी खुद को आज़माने की
हम माँ के सपनों  श्मशान छोड़ के चले
जुबान काँप जाती है जेहन में नाम उसका आते ही
किनारे का भरोसा दे कर जिसे बीच रेगिस्तान छोड़ के चले
पुरखो ने सिखाया नमाज़ों में होती है दुआ क़ुबूल अक्सर
हम मस्जिद में अज़ान छोड़ के चले
इक ठोकर ही काफी थी ज़माने की ज़िन्दगी समझने को
वापिस घर को इसका मैदान छोड़ के चले

hum bachpan nadan chhor ke chale
pitaji ka banaya purana makaan chhor ke chale
laga jab shauk jawani me muhabbat ka
hum har mehmaan chhor ke chale
rahi aankhein umr daraaz rastho me tiki hui
gali dar gali uska makaan chhor ke chale
kisi fakeer ne kaha tha neki kar dariya me daal
hum har salaahe-jaan chhor ke chale
kuch keemti samaan rakha jebo me
hum zindagi me nafa nuksaan chhor ke chale
Bulati rahi apne sheher ki galiyaan bahut humein
magar apno ko pareshaan chhor ke chale
ek dhun thi khud ko aazmaane ki
hum maa ke sapno ko shamshaan chhor ke chale
jubaan kaanp jaati h jehen me naam uska aate hi
kinare ka bharosa de kar jise beech registaan chhor ke chale
purkho ne sikhaya namazo me hoti hai dua qubul aksar
hum maszid me azaan chhor ke chale
ik thokar hi kafi thi zamane ki zindagi samjhne ko
wapis ghar ko iska maidaan chhor ke chale

- Kamal Paneru

Last poem in 2017

Saturday, October 7, 2017

You Will Always Be in My Dreams

To the one who can handle me at my worst and cheer me at best

we got separated yesterday.
She had tears in her eyes
I had pain in my heart
She told 'I love you so much'
I thought 'nobody would love you as I'
She told 'it seems you dont love me'.
I closed my eyes.
She told 'I want to leave'.
I wished if she asked what I wanted
She told 'I will miss you daily'
I expressed with my eyes 'I will more than that'
She said 'promise me, you will take care yourself'
I heard her name in my heartbeat
She showed her diary full of her time with me
I couldn't show the unpublished manuscript of 273 pages based on her
She told how she spent time without me
I smiled thinking name we had decided for our first baby
She waved bye
I hugged her last time
She decapitated words inside her
I thought if it were a dream.
She kept looking the way until I disappeared
I wished she stop me.
She had said 'I will miss you daily'
Now, I get hiccups daily
And strive to publish those now 412 pages.

- Kamal Paneru (Kani)

Thursday, October 5, 2017

अफसाना


अठखेलियाँ करती हुई तुम्हारी यादों की बारिश की कुछ बूँदें
सहसहा टकरा गयी मेरे अंतरमन के किवाड़ों से
मैं एक पल पहले झूमती हुई सी बिखर गयी अगले पल में
बुदबुदाते हुए होठों से फिर मैंने नाम लिया तुम्हारा
और तुम्हारी तस्वीर को सीने से लगा बैठी
अतीत की परछाइयों में कुछ ऐसी खोयी मैं
की खुद की सुधबुध ही भूल बैठी
की तुम्हारा मेरा हाथ पकड़ कर सड़कों में साथ चलना
एक अपनेपन का एहसास करा देता था
तुम्हारे साथ सदियों को चंद लम्हों में बिता लेना
एक अजब सा जादू महसूस होता था तुम्हारी आवाज़ में
कुछ भी तो नहीं भूली हूँ मैं आज भी
वही तुम्हारी बेबाकी, मुझे मीठा सा छेड़ जाना
नजरें बचा कर मुझे इत्मीनान से पहरों तक देखना
नहीं हो साथ फिर भी साथ होने का यकीन दिलाना
मुझे याद है तुम्हारा हर पल को हसीं बनाना
तुम्हारे चले जाने के बाद से
ये घर भी मकान हो गया है
कुछ भूले भटके तुम्हारे लहज़े और सलीके
और कुछ तुम्हारे लौट आने की चरमरायी सी उम्मीदों की दीवारों पर
टिका हुआ है मेरे दिल का सुकून

- कमल पनेरू

Wednesday, September 20, 2017

Narajgi



suno us chai ke pyale ka kya karu main
jo naraz ho kar chhat ki mundher par chhor gaye the tum

yu bejuban ho kar ek tak mujhe dekhna
aur mere dekh lene par najrein fer lena
Naraj ho to keh do na

tumhare aangan me lagi angoor ki bel
humare ghar ki diwaro se lipatne lagi hai
tum bhi kisi roz yu lipat jao na

Main khamkha hi sochti firti hoon uljalool khyal
tum aao ki inhe ek saleeka de do

Chuppi ishq me kab hui hai mehrbaan
ye dil mohtaz hai tumhe sunte rehne ka

Mausamo ka sawan to fir laut aya hai
Meri zndagi me bhi sawan lauta do na

Nahi basar hoti ye raatein tanha tumhare bagair
Ye dooriyaan aa kar mita do na

Kal kisi se suna ki tumhari muskurahat bebaak hai
Narajgi choro ye bebaaki dikha jaao na

Baithe ho tum bhi gumsum maalum hai mujhe
tum reh lete ho kaise khamosh shikha jao na


Friday, September 8, 2017

Why Should I Love You...??? Reviewed by Author Harsha Shastry

Thank you Harsha for criticizing it at best and giving an honest opinion.
Thank you for such wonderful review


Saturday, August 19, 2017

अलग सा ही एहसास

बालाजी मंदिर से आने के बाद से कुछ अलग सा ही एहसास हो रहा है ! ना जाने क्यों ऐसा लग रहा है हर दम कोई मेरे साथ चल रहा है! डर सा लग रहा है हर वक़्त ! एक बेचैनी सी है जो अंदर ही अंदर खाये जा रही है! कभी अचानक से डर  नींद भी खुल जा रही है रात में.  मन सा लग ही नहीं रहा है किसी भी काम में. हर किसी को चिड़चिड़ापन सा हो रहा है ! जिस काम को करते हुए इतना वक़्त गुज़र गया है ऑफिस में, आज कॉन्फिडेंस ही नहीं है करने में. ऐसा लग रहा है की वो हर दम मुझे देख रहा है, हर वक़्त. अभी भी ! अभी भी  बगल में बैठे होने का एहसास हो रहा है! जब सोता हूँ रात में तो पता नहीं क्यूँ  ये डर होता है की मैं किसी दूसरी दुनिया में पहुंच जाऊंगा! जहाँ इंसान नहीं हैं एक भी!
पता नहीं आगे क्या होगा, ये बगल में बैठा शक्श न जाने क्या चाहता है मुझसे! 

Thursday, August 3, 2017

Blurb: Why Should I Love You...???


Have you ever wondered why your partner loves you? How would you feel if consort asks the reason to love you? What if there is no reason? Can you abreast the same?
He was debonair engineer but she was small town lass. He had dangling joy but she was from conservative family. He liked her but she loved him. 
Raunak and Juhi come close with a platonic relationship and unwillingly abnegate the desire. Meanwhile, Megha peeps from the past. Love changes their lives and then one day everything turns to unexpected.
Will time heal their lives? Will love enliven them or leave eradicated? Will Megha make the space for everyone? Will their creed in love be judged by crumbled situations? 
Let’s be the part of this heart melting love story and find a reason to love someone.

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Tuesday, August 1, 2017

सोच


सुनो, तुम अक्सर मुझसे मिलने आया करो ना
अच्छा लगता है मुझे तुम्हारे साथ वक़्त बिताना
हाथों में हाथ ले कर सड़क किनारे छाँव में चलना
तुम्हारा मुझे नज़र बचा कर देखना
और एक छोटी सी बात को भी अपने ही ढंग में बयां करना
अच्छा लगता है मुझे तुम्हारे साथ अठखेलियां करना
तुम्हारे दिए उस कॉफ़ी के मग में छपी अपनी तस्वीर देखना
तुम्हारे हर बिखरे लफ्ज़ से खुद को समेट लेना
किसी संगीत की धुन में तुम्हे याद कर लेना
और फिर ख्वाबों में सदियों तलक बातें करना
अच्छा लगता है मुझे तुम्हे अपनी रूह में रखना
पानी पड़ने पर मिट्टी की खुशबु तो महसूस की होगी ना तुमने कभी?
कुछ ऐसा ही हाल होता है मेरे दिल का तुमसे मिलने पर
तुम्हे हर्फ़ हर्फ़ अपने होठों में रख लेना
अच्छा लगता है मुझे तुम्हे बाहों में भर लेना
दर्द में जब भींच लेते हो तुम मुझे अपने सीने में कहीं
उस लम्हे धड़कनों के शोर बेचैन कर देते हैं मुझे
हूँ किसी अपने की बाहों में खुद को कुछ ऐसी तसल्ली देना
अच्छा लगता है मुझे तुम्हें अपनी मुहब्बत कहना 

Thursday, July 20, 2017

आरज़ू



कुछ अटपटे से ख्याल आ रहे हैं
तुम आ कर सम्हाल लो ना मुझे
दिन कुछ बिखरा बिखरा ही गुजरा मेरा आज
रातों में कुछ अपना ख्याल दो ना मुझे
ढलती शाम की धूप में कुछ बेरुखी महसूस हुई मुझे
ये कैसी अंजुमन है, बाहर निकाल दो ना मुझे
दो बरस से धड़कनो ने जान निकाल दी है मेरी
छुपा है क्या अंदर, खंगाल दो ना मुझे
नहीं है चाह की कोई टूट कर चाहे मुझे
रंगों में रंग गुलाल दो मुझे
किस आग ने मुझे तपा रखा है कश्मकश में ?
राख कर दूँ आज सब कुछ
एक ऐसी मशाल दो ना मुझे
तुम्हारे हाथों की छुअन याद आने लगी है
अपने घर के किसी कोने में डाल दो ना मुझे
है शक़ मुझे की तुम सिर्फ मेरे हो
अब इस झूठ के जाल से निकाल दो ना मुझे
देखो दिलों का रूठना तो चलता ही रहेगा
किसी रोज़ किस्मत का टक्साल दो ना मुझे

टक्साल - वह स्थान जहाँ सिक्के ढलते हों;

- कमल पनेरू

Wednesday, June 28, 2017

बेचैनी



हाँ तुम्हारे यूँ दूर चले जाने से
एक शख्स मेरे अंदर उदास बैठा है
अलविदा नहीं होते अक्सर खुशमिज़ाज़ अंदाज़ के
यही सोच कर आँखों के बहुत पास बैठा है
तुम्हारे हाथों का वो कोमल सा स्पर्श
और मेरी हर बात पर होठों पर एक प्यारी सी हसी
तुम्हारा यूँ हर दफ़ा कुछ ना कुछ तोहफे देना
मेरे हर बार रूठ जाने पर चंद पलों में मना लेना
यही कुछ यादें समेट रहा हूँ वक़्त से
वक़्त है कि ओढ़ कर लिबास बैठा है
महसूस की थी मैंने तेरे दिल में वो कसक उस शाम
जो मुझे इत्मिनान से गले लगा कर पूरी होनी थी
और वो नज़रो से ही दूर तक साथ आना
ये अधूरा ही रह गया था
मुहब्बत आज बेचैन सी थी तेरे मेरे दरमियाँ
जोड़ लूँ सब लम्हे तेरे साथ में
की करने अब ये दिल नए कयास बैठा है
तेरे होठों पर मेरा नाम कांपता सा रह गया
पर तेरा चेहरा था कि सारा दर्द कह गया
थी आज खामोशियों के पास चीख़ती हुई जुबां
पर ये दिल था जो सब कुछ सह गया
कुछ अरमान और भी जगते हैं अब दिल में
जो झंझोड़ देते हैं मेरी रूह को
तड़प जाता हूँ मैं तुम्हे साथ ना सोच कर
मानो खुदा भी करने मुझसे अट्हास बैठा है 
हाँ तुम्हारे यूँ दूर चले जाने से
एक शख्स मेरे अंदर उदास बैठा है

- कमल पनेरू





Sunday, June 25, 2017

तसल्ली


कुछ अलसायी सी शामें फिर से दस्तक दे रही हैं
मैंने दरवाजो पर हुई वो धीमी सी आहट सुन ली है
होंगी जरूर वही पुरानी तुमसे लिपटी यादें
ये सोच कर मैं अंदर कहीं छुप गया हूँ
आज फिर धड़कन तेज़ होने लगी है
सोचता हूँ तुम आओ कभी और देखो
मेरे घर की पुरानी  दीवारें
जिनमे तुम्हारी अनगिनत तसवीरें हैं
वो किनारे पर लगाया तुलसी का पौधा
अब भी तुम्हारे हाथ से पानी मिलने के इंतज़ार में है
और अमरुद की डाली पर लटका वो टूटा सा झूला
मानो नाराज़ है अब तुम्हे ना पा कर
घर के आँगन पर अब धुप खिलती ही कहाँ है
वो रंग वो चमक न घर में है और न मेरे चेहरे पर
हाँ जहन में कुछ निशाँ हैं तुम्हारे चले जाने के
और एक उम्मीद है इन यादों के साथ तुम्हारे लौट आने की
साथ ही है झूटी तसल्ली की तुम अब भी मेरे हो!
- कमल पनेरु

Wednesday, June 14, 2017

थोड़ा मुस्कुरा दो ना


क्यूँ शांत से बैठे हो आज
थोड़ा मुस्कुरा दो ना
दिन भर की थकान से टूट गया है ये बदन
ये थकान मिटा दो ना
अक्सर होते हैं तुम्हारी खामोशियों में किस्से हज़ार
मुझे आज वो किस्से दो चार सुना दो ना
ऐसा सन्नाटा पहले कभी दरमियान नहीं रहा
अपनी फिर से वो आवाज़ सुना दो ना
मुहब्बत नहीं होती किसी फ़कीर की दुआ की मोहताज़
तुमसे ही सीखा है मैंने
की तुम खिलखिला के हँस पड़ो फिर से
मुझे ये अंदाज़ सीखा दो ना
गज़ब का फासला आ खड़ा हुआ है दो पल के दौरान
नज़दीकियाँ कैसे होती हैं मेहरबान सीखा दो ना
आज दोस्तों में कुछ जिक्र सा हुआ था तुम्हारा
मैं सहसहा खिलखिला पड़ा था लाज से
तुमने बिताया कैसे दिन मेरे बगैर
चंद लब्ज़ों में ये बात बता दो ना
क्यूँ शांत से बैठे हो आज
थोड़ा मुस्कुरा दो ना
       
- कमल पनेरू


Sunday, February 5, 2017

Main aur Pitaji



Ek hi ghar me hain, magar alag alag kamro mein
Main aur pitaji

Khyal bahut aate hain mann me, magar aksar chup hi rehte hain
Main aur pitaji

Diwar ki ek ore main khada hu
Aur dusri ore khade hain pitaji

Jab bhi milte hain ghar me to nazrein bachate hain
Main aur pitaji

Sath hain magar fir bhi door lagte hain
Main aur pitaji

Kal kisi baat par kuch behes hui fir khamosh ho gaye
Main aur pitaji

Baat karne ko kadam to aage badte hain
Magar hotho ko see lete hain
Main aur pitaji

Kabhi bewajah bhi muskura lete the
Aaj baat karne ki wajah hone par bhi khamosh hain
Main aur pitaji




Ek ore jarjar badan hai, ek ore nayi jawani
Yahi hain main aur pitaji

Kal Diwali thi, magar diye nahi dil jala rahe the
Main aur pitaji

Sannato se bhari rehti hai mere ghar ki almariya
Baat hi nahi karte hain main aur pitaji

Thak gya hai shareer fir bhi sham ki shair pe jate hain
Main aur pitaji

Nahi pasand unhe nayi filmein dekhna
Fir bhi sath baith kar waqt bitate hain
Main aur pitaji

Wo purane radio me magan hain aur main naye laptop me
Aise hi jeete hain main aur pitaji

Kabhi pair nahi chhuta main unke
Fir bhi aashirwad diya karte hain
Kuch aise hi hain main aur pita ji

Bimar hote hain to dawai bagal me rakh deta hu
Meri chhoti si chot pe marham bhi lagate hain
Kuch aise hi hain main aur pitaji

Main unki ore rukh bhi nahi karta
Mujhe sota dekhne kamre tak aate hain
Kuch aise hi hain main aur pitaji

Nahi hain wo rubaroo is mobile aur computer ki duniya se
Fir bhi aksar in par bhi baat kar lia karte hain
Main aur pitaji

Main nayi tasveero me magan rehta hu
Wo purani album niharte hain
Kuch aise hi waqt bitate hain main aur pitaji

Puri umr gaav me chhote se ghar me bitayi
Mujhe shehro ke school me padaya
Ab vicharo me matbhed rakhte hain
Main aur pitaji

Bahut akela mehsoos karte hain ghar me
Din bhar baat hi jo nahi karte
Main aur pitaji

Hafto ho jate hain hme ek dusre se baat kiye
Holi me bhi gale nahi milte hain
Main aur pitaji

Bhale hi hum dono apni dunia me magan ho
Magar dosto me ek dusre ki tariff jarur kiya karte hain
Main aur pitaji

Baat karne ko jab nahi hoti kuch
To maa ki tasveer ke aage khade ho jate hain
Main aur pitaji


- Kamal Paneru

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Friday, January 27, 2017

Yaadon Ka Daakiya


Kal tumhari yaad ka daakiya aya tha ghar pe
ek chitthi thi uske hath me
wahi dhundhla peela sa kagaz
jispe kabhi likha tha pyar tumne
peepal ke sookhe patte samaan
bikhar gayi main tumhari soch tale
fir khusi ka ek aansu chhalak aya
maine dekha usme, tumhara aksh nazar aa rha tha
tumhari muskaan mere hotho pe baith gayi thi
maine dunia se nazar chura k aaine ko takaa tha fir
apni aankho me tumhari aankho ko dekh rahi thi
tumhara wo itminan se mujhe niharna bahut yad aya
tumhari chhuan si mehsoos hone lagi thi mujhe
kuch waqt aisa hi bitaya tha humne sath me
fir kiya solah shringar maine
socha ki tum mann ki aankho se jarur dekh loge mujhe
dil khush tha bahut
hatho me choori aur sindoor bhi lagaya tha sar pe
kal tumhari yaad ka daakiya aya tha ghar pe

 - (c) Kamal Paneru

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Monday, January 16, 2017

Road Accident: A Terrifying Journey



I was traveling to Nainital from Delhi, a journey of 300 km. I took my bus from Anand Vihar bus stand and boarded on at 8:00 p.m. Fog was too dense in the nearby area, hence driver to prevent any trouble to passengers was driving the bus quite slowly. All passengers were packed under their blankets and the warmness of AC. Things were going quite well until that moment. It was, I think, Kashipur area, a border of Uttarakhand and Uttar Pradesh. It was 1:00 a.m. at night and the road was clear, I could see twinkling lights at horizon. To save the time, driver sped up the bus without letting passenger disturbed. I with ear buds enjoying movie on mobile, my eyes were turning sleepy. Two bicycles were crawling on road and our bus was to overtake that. And yes! We did it. Then, a thing happened which I had not expected. A Mahindra Bolero overtook our bus in speed at stopped at the mid of road with roaring of tires, so did our bus. A Punjabi person came out of driver seat of that Bolero and started to seek something under his seat after opening the door. He took out a Kirpan and approached our bus with running feet. He with full of his power hit that weapon on the front glasses of our bus, in no second glass broke and scattered into thousands of small pieces, he then, even after resist by driver, broke all window glasses one by one and abused driver a lot. I was stunned on it, everybody woke up with that noise, we were trapped there. He also fused the headlights of our bus and then ran away. There was no light on the road so it was quite difficult for driver to drive in such darkness, then two of passengers took out their big torch and set next to driver to show the path, with speed less than 20 km we reached the police station after 2 hours and filed a complaint against that person stating his vehicle number.
-- Kamal Paneru