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Sunday, June 25, 2017

तसल्ली


कुछ अलसायी सी शामें फिर से दस्तक दे रही हैं
मैंने दरवाजो पर हुई वो धीमी सी आहट सुन ली है
होंगी जरूर वही पुरानी तुमसे लिपटी यादें
ये सोच कर मैं अंदर कहीं छुप गया हूँ
आज फिर धड़कन तेज़ होने लगी है
सोचता हूँ तुम आओ कभी और देखो
मेरे घर की पुरानी  दीवारें
जिनमे तुम्हारी अनगिनत तसवीरें हैं
वो किनारे पर लगाया तुलसी का पौधा
अब भी तुम्हारे हाथ से पानी मिलने के इंतज़ार में है
और अमरुद की डाली पर लटका वो टूटा सा झूला
मानो नाराज़ है अब तुम्हे ना पा कर
घर के आँगन पर अब धुप खिलती ही कहाँ है
वो रंग वो चमक न घर में है और न मेरे चेहरे पर
हाँ जहन में कुछ निशाँ हैं तुम्हारे चले जाने के
और एक उम्मीद है इन यादों के साथ तुम्हारे लौट आने की
साथ ही है झूटी तसल्ली की तुम अब भी मेरे हो!
- कमल पनेरु

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