क्यूँ शांत से बैठे हो आज
थोड़ा मुस्कुरा दो ना
दिन भर की थकान से टूट गया है ये बदन
ये थकान मिटा दो ना
अक्सर होते हैं तुम्हारी खामोशियों में किस्से हज़ार
मुझे आज वो किस्से दो चार सुना दो ना
ऐसा सन्नाटा पहले कभी दरमियान नहीं रहा
अपनी फिर से वो आवाज़ सुना दो ना
मुहब्बत नहीं होती किसी फ़कीर की दुआ की मोहताज़
तुमसे ही सीखा है मैंने
की तुम खिलखिला के हँस पड़ो फिर से
मुझे ये अंदाज़ सीखा दो ना
गज़ब का फासला आ खड़ा हुआ है दो पल के दौरान
नज़दीकियाँ कैसे होती हैं मेहरबान सीखा दो ना
आज दोस्तों में कुछ जिक्र सा हुआ था तुम्हारा
मैं सहसहा खिलखिला पड़ा था लाज से
तुमने बिताया कैसे दिन मेरे बगैर
चंद लब्ज़ों में ये बात बता दो ना
क्यूँ शांत से बैठे हो आज
थोड़ा मुस्कुरा दो ना
- कमल पनेरू
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