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Sunday, November 24, 2019

थोड़ा सा बेवफ़ा


बहुत इतराया तू भीड़ में चंद लोगों का साथ पा कर
मगर मालूम है मुझे कि तेरी असलियत क्या है !
तू कतरा कतरा डूबा हर एक मेहबूब के इश्क़ में
तुझे पता है कि तेरी शख्शियत क्या है !
हर मोड़ पर छोड़ देता है तू अपना आशिक मिज़ाज़
यही मुहब्बत है तो इसमें कैफ़ियत क्या है
तोड़े तूने बेगुनाह दिल हज़ारों दफा
शरम कर जो पूछता है की वहशियत क्या है!
कल शाम से तू मेरी गली से गुजरने लगा है
अरे सच सच बता की तेरी नीयत क्या है !
टूटा है इस दफा दिल तेरा भी या छुपा कोई राज़ है
कुछ तो बता की तेरी तबियत क्या है !!
कभी पिछली गली से तेरी आवाज़ भी आ जाती थी
तो खुद पर गुरूर होने लगता था !
आज तू गले भी लगा ले तो धड़कनों पर असर नहीं होता
कैसे कहूँ की तेरे इश्क़ की अब एहमियत क्या है!!

कैफ़ियत = ज़ुस्तज़ू

- कमल पनेरू 

Sunday, November 3, 2019

तुम और मैं

कसम खुदा की कि हम  टूट कर चाहेंगे तुम्हें 
बस शर्त इतनी है कि हमें टूटने मत देना!


सुनो, जब भी तुम्हें होने लगे शक हमारी मुहब्बत पर 
बस तुम हमारे नाम की मेहंदी रचा कर आज़मा लेना!


सुनो, बड़ी अजीब मुहब्बत करते हो तुम 
यूँ तो हमें साँसों में बसा कर रखा हुआ है 
मगर सरे आम गले लगाने से डरते हो तुम 
हर दफा तुम वही मगर लहज़ा नया ले आते हो 
क्युँ ये सितम भला करते हो तुम 
मैंने तो तुमसे सुकूं के चार पल ही मांगे हैं 
सुना है बाकी वक़्त किसी और की गुफ्तगू करते हो तुम 
तुम्हारी कमीज पे ये किसी के बाल कैसे?
बताओ तो सही  किससे मिला करते हो तुम?
हमने तो तुम्हारे लिए साँसे भी बिछा दी 
क्या ऐसे ही मुझ पर मरते हो तुम?
तुम्हारे लब कुछ और आँखें कुछ और कहती हैं 
सच बताओ क्या मुझसे मुहब्बत करते हो तुम ?



सुनो, अकेले रहना अच्छा लगता है क्या?
मुझसे कोई रिश्ता पुराना लगता है क्या?
बेशक तुम रहो खुद के करीब सन्नाटों के मानिंद 
सच कहो दिल जलाना अच्छा लगता है क्या?
मैंने तो तुम्हें मांग लिया खुदा से हर दुआ में लेकिन 
दुआ क़ुबूल नहीं करवाना अच्छा लगता है क्या?
मेरे ख्वाबों को कभी ताबीर तो दिया करो 
मेरी आँखों को कभी अपनी तस्वीर तो दिया करो 
मुझसे दूर जाना अच्छा लगता है क्या?
तेरे काँधे का तिल अब भी मेरी नज़रें टटोलती हैं 
तू चुप रहे तो क्या, अब तेरी आँखें बोलती हैं 
तुम्हें ये सब बहाना लगता है क्या?

- कमल पनेरू 


Reviews on 'Nemesis of Kalinga'



Review Point: 4 out of 5
Author: Shreyas Bhave
Publisher: Platinum Press, Imprint of leadstart publishing
Genre: Historical
ISBN: 978-93-52010-62-2
Edition: First, 2019
Page Count: 329

About the Book

It is last book in the series The Asoka Trilogy by author Shreyas Bhave. Earlier two books are The Prince of Patliputra and Storm from Taxila. The series is about Mauryan dynasty during 250 B.C.

Platform

Categorised in the multiple sections with characters including Devdatta, Asoka, Kanakdatta, Hardeo, Chanakya and Radhagupta, this book is about exploring Kalinga with the guidance of one and only highly appreciated historical person Chanakya. He does not consider Kalinga a kingdom but a Mahajanpada. It shows how insecure Asoka feels in the absence of his prime minister and what values Devi, his late wife, holds for him though he had new wife Asandhi. Later, Chanakya also suggests Asoka to change his wife to get children. Story tells about the preparation in Patliputra to attack Kalinga because it was not about winning the war but to add the territory. How Asoka regained his strength? What sacrifices Radhagupta made in this continuation? What role General Bheema played throughout the war? What curse Asoka faced about Kalinga? What role Devi, along with Kanakdatta, played after being dead for Asoka? What Kanakdatta did with Shiva, Asoka's friend from South War? Were both Kanakdatta and Shiva loyal to Samrat? To know the answers of all these, go and grab the copy of Nemesis of Kalinga.

Strength of the Book

Amazingly amazing way of presentation. A perfect blend of writing skills, depicting emotions and connecting the dots between chapters and characters. Author has done perfect justification with each character in the story. Fictional characters Kanakdatta, Hardeo and Shiva and knit in such a way that we are living the story. There was no such gap where one reader can say that these characters do not enhance the narration. Also, other characters  including General Bheema and General Navin are given proper shape with the flow of story. Author has also shown the emotions between two close friends Shiva and Kanakdatta when they meet in the absence of Samrat. Moreover to this, Chanakya's character has strengthen the story. He is presented the same way as all have heard from different historical texts and evidences. 

Few catchy lines from the book:

General Bheema is unpredictable. In my life I have learnt that the most dangerous enemy is not the one who is most powerful but the one whose next move you cannot predict (p.151).

Another man shall not assist you to breathe, eat, and cover yourself (p. 67).

The fact that I did not say yes to him means we want something more (p. 224).

You are just starting out, my friend. Do you imagine I learnt archery in one day? These things take time (p. 62).

Weakness of the Book.

Beginning is very slow. Though Chanakya character is served well but at few places with Chanakya, it seems story going fictional since seemed played with historical facts. In chapter 18, Kanakdatta has given much emphasis for the upcoming fate of Kalinga, but with fictional character, such description does not seem appropriate. However, chapter wrapped well with Shiva's act there. Giving time period before starting each chapter creates confusion sometimes. Defining after-effects of Kalinga war in more prominent way could be more fruitful. 

Conclusion

Overall, this book is catchy read. Author Shreyas Bhave has unique ways of presenting things from history. Whether it is first book of the series or the last, he has kept pace throughout and page by page as story matures has given perfection justification to the narration and the presence of each character. Another best thing is one can read every book solely where one does not need to go through the previous book to know what happened in earlier books. To make it more clearly, author has given a long list of all the characters defined in the book. Author has done great job with this series and this trilogy safely makes haven for itself in the bookshelves of the readers.

One can read review of first book of the series here: http://kamalpaneru.blogspot.com/2016/03/reviews-on-prince-of-patliputra.html  

Review By:
- Kamal Paneru

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Tuesday, April 2, 2019

तुम्हारा मेरा प्यार

एक अर्से से साथ हैं हम! हाँ हम! मैं और तुम नहीं, हम! रूठना मनाना चलता रहता है! कभी तुम रूठ जाओ तो कभी मैं! हमारा रिश्ता किसी गाड़ी की तरह ही तो है! अगर एक पहिया सड़क से नीचे चला जाये तो दूसरा पहिया गाड़ी को फिर सड़क पर ले आये! कुछ इसी तरह तो हमने अपने रिश्ते की बुनियाद रखी थी कुछ ११ साल पहले! ११ साल निशी! ११ साल! आज शायद पहली बार हमने अपने रिश्ते की उम्र गिनी है! पता ही नहीं लगा कि  कब हमने हँसते खेलते रूठते मनाते ११ साल बिता लिये! मालूम ही नहीं चला की कब तुम और मैं हम बन गये! लोग एक साल में ही बदले बदले नज़र आते हैं मगर मैं तुम्हें ११ साल से देख रहा हूँ! मगर सच कहूँ तो तुम्हारा चेहरा जब हम पहली दफा मिले थे याद है मुझे! मगर उसके बाद आज का ही चेहरा याद आता है! मैंने कभी सोचा ही नहीं कि तुम पांच साल पहले कैसी दिखती थी!
कभी कभी ना तुम गलत होती हो ना मैं, कभी कभी हम दोनों भी गलत होते हैं! मगर यकीन मानो कि कभी कभी वक़्त गलत होता है! वक़्त की मार बहुत बुरी होती है और शायद इस बार इसकी तलवार की नोक पर हमारा रिश्ता है! क्या वक़्त को दोष देना ठीक है? शायद हाँ बिलकुल ठीक है! वरना जिनको कभी मौत अलग नहीं कर सकती उनको ये वक़्त अलग करने का कैसे सोच रहा है? हाँ मानता हूँ मैं नादान हूँ बेवकूफ हूँ, अगर तुम्हारे शब्दों में कहूँ तो ढीठ हूँ मैं! लेकिन यक़ीन मानो जैसा भी हूँ तुम्हारा ही हूँ मैं! तुम्हारे बिना खुद को सोचना जैसे कान्हा के भजन में राधा का न होना, जैसे आसमान में उड़ती पतंग का डोर से जुड़ा ना होना, जैसे मरू में किसी प्यासे का होना, जैसे जल बिना मछली का होना और जैसे बिना बरसात का बादल होना! मगर जब तुम्हारे साथ रहूं तो ऐसा मानो जैसे खुद को पूरा पाना, जैसे अपनी आत्मा से रूबरू होना, जैसे सारे ख्वाब एक पल में पूरे होना, जैसे अब अपने लिए बेफ़िकरा हो जाना, जैसे मालूम होना कि इस अनजान शहर में अकेला ना होना, जैसे हॉस्पिटल में सबसे पहले तुम्हें अपने बगल में मेरा ख्याल रखते हुये पाना, जैसे दुआ क़ुबूल हो जाना और जैसे साँस में साँस और जिंदगी में जिंदगी आना!
अक्सर तुम्हारे चेहरे पर हँसी ले आने के खातिर अपना मजाक बना लेना, अपने पुराने जनम के किस्से तुम्हारे साथ बनाना! जब तुम मुस्कुराओ तो कहना की 'बस यही है जो मुझे तुमसे उम्र भर चाहिये! तुम मुस्कुराती हो तो जैसे मेरी दिन भर की थकान मिट जाती है जैसे मुझे लगता है कि यही मुहब्बत का चरम है!
अभी  हमारा वक़्त की तलवार की नोक पर है इसे भी बचाया जा सकता है और इसे बचाएगा तुम्हारा मुझपे और मेरा तुमपे विश्वास, तुम्हारे और मेरे कभी साथ ना छोड़ के जाने के वो मजबूत इरादे और साथ ही साथ जो सबसे अहम है, हमारा प्यार!

तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा
कमलककड़ी

Saturday, March 23, 2019

बस्ती में



पड़ा है  खाली एक मकान बस्ती में
वो छोड़  गए  सारा जहान बस्ती में
कुछ पायल की छन छन, कुछ चूड़ी  की खनखन
कुछ बचपन की  किलकारी, कुछ  बातें  बहुत  प्यारी
रखा  है  सारा  सामान बस्ती  में
पड़ा है  खाली एक  मकान  बस्ती  में
तुझे  भूलने  की  ज़िद  में  किये  कुछ वादे 
हाँ  तेरे छोड़ जाने  के  वो सारे झूठे  इरादे
तेरी  याद  में  पल  पल मरता  एक  इंसान  बस्ती  में
पड़ा  है  खली  एक  मकान  बस्ती  में
वो  आँगन में  झूलती  गुलाब  की  बेल
वो  खिड़की  के  टूटे  कांच  से  दोपहर  की  झांकती  धुप
अब  सब  कुछ  हो  गया  वीरान  बस्ती  में
पड़ा  है  खाली एक  मकान  बस्ती  में
छत की मुंढेर पे रखे कुछ गमले
वो दरवाजे  पर  लाल  रंग  से  बना  स्वस्तिक  का निशान
तेरी  बंगाली  में  मिली  टूटी  फूटी  हिंदी
आईने  में  लगायी  तुम्हारी  वो  छोटी  सी  बिंदी
सब बन  गया  वक़्त  का  इम्तेहान  बस्ती  में
पड़ा  है  खाली एक  मकान  बस्ती  में
तुम नहीं  तो  तुम्हारी  तस्वीरें ही सही
तुम्हारी  बातें  नहीं  तो  यादें  ही सही
तुम्हारी  धड़कन  न  सही  तो  अलमारी  में  तुम्हारी  पायल  ही सही
तुम्हारे  लहज़े  का  पूरा  रेगिस्तान  बस्ती  में
पड़ा  है  खाली एक  मकान  बस्ती  में
न पूछो मुझसे अब मेरे खामोश होने का सबब
बसती है मेरी जान बस्ती में
पड़ा  है  खाली एक  मकान  बस्ती  में

- कमल पनेरू 

Thursday, March 7, 2019

मैं हूँ तो सिर्फ तुम्हारा ही!



मैं एक बार फिर लौटा तुम पे
बेतहासा सा और थोड़ा सा बेचैन सा भी
गाड़ियों का हॉर्न जैसे आज कुछ सुनाई ना दे रहा हो
जैसे तुम्हारे सिवा कहीं कुछ दिखाई ना दे रहा हो!
सर से निकलता पसीना जब गाल के पास से गुजरा
तो एक कंपकंपी सी महसूस हुई मुझे
कुछ उसी तरह जिस तरह महसूस की थी मैंने
तुम्हारे मुझे छोड़ जाने की बात पर
कितना अजीब है ना तुम्हारे मेरे बीच
कुछ दिन बात ना होना ही एक बात बन जाता है
वो बात कब बहस बन जाती है पता ही नहीं लगता
मगर जब मान कर तुम मेरे गले लगती हो ना
तुम्हारी साँसों को जब मैं महसूस करने लगता हूँ
और तुम्हारी धड़कनें मेरी धड़कनों संग जब अठखेलियाँ करने लगती हैं
सच कहता हूँ उस लम्हे पर सौ जनम कुर्बान हैं
मैं भरसक प्रयास करता हूँ उस लम्हे को रोक लेने को
तुम्हें अपनी बाहों में समेट लेने को
मगर अपनी टूटने की आदत से मजबूर
ये सब ख्वाब फिर एक बार टूट कर सा रह जाता है
जब ये बहस चुप्पी का नाम ले कर दरमियाँ आ ख़डी होती है
और अहसास दिलाती है की मुहब्बत छूट रही है
मैं चाह रहा था की तुम इस बेचैनी में थाम लो मेरा हाथ
और कहो की लौटा दोगी मेरा सुकून
जो तुम्हारे चंद लफ़्ज़ों में फंसा हुआ है कहीं
सुकून से सुकून के बारे में सोच पाऊं
इतनी भी तो फुर्सत नहीं दी इस कम्बख्त नौकरी ने
हाँ मगर यकीन करो जितना जी में आये टटोल लो मुझे
तुम्हारे सिवा मुझमें कुछ भी मिले तो कहना मुझे
क्यूँकि मैं हूँ तो सिर्फ तुम्हारा ही
हाँ कुछ झल्ला सा, कुछ सिरफिरा सा
कुछ नादान सा थोड़ा गुस्सैल भी
मगर जैसा भी हूँ मैं हूँ तो सिर्फ तुम्हारा ही!
तुम्हारा कमल


Sunday, February 24, 2019

बातें


इश्क़ करते हो
और नफा नुकसान की बातें करते हो!
अजीब शख्स हो
इंसान से भगवान की बातें करते हो !
ये कैसी सब है कि हर पल वीराना
मगर तुम बहार-ए -जान की बातें करते हो !
लगते तो बहुत समझदार से हो तुम
मगर इश्क़ नादान की बातें करते हो!
लौट गया वो डाकिया तुम्हारी देहलीज़ पर आ कर
तुम फ़िज़ूल ही दुनिया जहान की बातें करते हो !
कुछ गुलमोहर की खुशबुओं में है
तो कुछ सावन की पहली बारिश में
बताओ तुम किस मुस्कान की बातें करते हो!
महफ़िल में जाना, तनहा हो जाना
लौट कर घर को आना और फिर तारों को सताना
ये दिल ही दिल में किसके बखान की बातें करते हो !
जिससे भी मिलते हो नज़रें चुरा लेते हो
कहो तुम किससे दिल-ए-मेहमान की बातें करते हो !
एक अरसा हुआ कि हमने आइना ही नहीं देखा
एक अरसा हुआ की हमने तुमको ही नहीं देखा
सुना है तुम इश्क़ में इम्तेहान की बातें करते हो!
कि टूट कर भी नहीं टूटे तुम्हारे मेरे मुहब्बत के धागे ऐ कमल
कि तुम अब भी दो जिस्म एक जान की बातें करते हो !

- कमल पनेरू


Saturday, February 16, 2019

नया जख्म: पुलवामा



कुछ अनजान से थे कुछ बेख़बर से थे
अपने ठहाकों में ही खोये थे!
मालूम कहाँ था उनको कि आतंकियों ने
बीज कफ़न के बोये थे !
हुआ धमाका पुलवामा में फिर गगन पूरा हिला दिया
एक पल में ही खून उन जाबांजों का मिट्टी में फिर मिला दिया!
टुकड़ों में बिखरे उनके शव ने हिन्दुस्तां पूरा झकझोर दिया
मातृभूमि के रखवालों ने दम एक पल में ही तोड़ दिया!
इनकी वीरता को तिरंगे ने झुक कर सलाम किया!
ऐसी ओछी हरकत को जैस-ए-मुहम्मद ने अपना नाम दिया!
लोग मनाते रहे वैलेंटाइन पर उन्होंने खुद को कुर्बान किया !
चंद लम्हों में ही आदिल ने देश को श्मशान किया!
पक्ष हो या विपक्ष हो आपस में ना अब लड़ेंगे
हाँ सिध्धू जैसे नेता आतंकियों की भाषा जरूर पढ़ेंगे !
जख्म गहरा है पुलवामा का, सीने पर चोट खायी है!
मगर हिंदुस्तान हूँ, बदला लूंगा कसम मैंने खायी है!
आलोचक आये बड़े बड़े और करी सबने निंदा है
देखना है जैस-ए नपुंसक कितनी देर जिन्दा है!
मरे नहीं शहीद हुये हैं मेरे बेटे आँसू ना मैं बहाऊँगा
इन देश में पलते गद्दारों को मैं सबक जरूर सिखलाऊंगा
कफ़न नसीब हो ना इनको, ऐसी मौत मारूंगा
अरे हिन्दुस्तां हूँ मैं, अपनी नयी तस्वीर उतारूंगा!
पल भर में ही बदल दूंगा मैं सारी वो तक़दीर को
देखे जो कोई मुड़ कर मेरे इस कश्मीर को
बना नहीं वो बारूद अभी तक जो मिटाये हिन्दुस्तान को!
आओ मिल कर ख़तम करें इस झंझट पाकिस्तान को !

- कमल पनेरू