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Saturday, March 23, 2019

बस्ती में



पड़ा है  खाली एक मकान बस्ती में
वो छोड़  गए  सारा जहान बस्ती में
कुछ पायल की छन छन, कुछ चूड़ी  की खनखन
कुछ बचपन की  किलकारी, कुछ  बातें  बहुत  प्यारी
रखा  है  सारा  सामान बस्ती  में
पड़ा है  खाली एक  मकान  बस्ती  में
तुझे  भूलने  की  ज़िद  में  किये  कुछ वादे 
हाँ  तेरे छोड़ जाने  के  वो सारे झूठे  इरादे
तेरी  याद  में  पल  पल मरता  एक  इंसान  बस्ती  में
पड़ा  है  खली  एक  मकान  बस्ती  में
वो  आँगन में  झूलती  गुलाब  की  बेल
वो  खिड़की  के  टूटे  कांच  से  दोपहर  की  झांकती  धुप
अब  सब  कुछ  हो  गया  वीरान  बस्ती  में
पड़ा  है  खाली एक  मकान  बस्ती  में
छत की मुंढेर पे रखे कुछ गमले
वो दरवाजे  पर  लाल  रंग  से  बना  स्वस्तिक  का निशान
तेरी  बंगाली  में  मिली  टूटी  फूटी  हिंदी
आईने  में  लगायी  तुम्हारी  वो  छोटी  सी  बिंदी
सब बन  गया  वक़्त  का  इम्तेहान  बस्ती  में
पड़ा  है  खाली एक  मकान  बस्ती  में
तुम नहीं  तो  तुम्हारी  तस्वीरें ही सही
तुम्हारी  बातें  नहीं  तो  यादें  ही सही
तुम्हारी  धड़कन  न  सही  तो  अलमारी  में  तुम्हारी  पायल  ही सही
तुम्हारे  लहज़े  का  पूरा  रेगिस्तान  बस्ती  में
पड़ा  है  खाली एक  मकान  बस्ती  में
न पूछो मुझसे अब मेरे खामोश होने का सबब
बसती है मेरी जान बस्ती में
पड़ा  है  खाली एक  मकान  बस्ती  में

- कमल पनेरू 

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