बहुत इतराया तू भीड़ में चंद लोगों का साथ पा कर
मगर मालूम है मुझे कि तेरी असलियत क्या है !
तू कतरा कतरा डूबा हर एक मेहबूब के इश्क़ में
तुझे पता है कि तेरी शख्शियत क्या है !
हर मोड़ पर छोड़ देता है तू अपना आशिक मिज़ाज़
यही मुहब्बत है तो इसमें कैफ़ियत क्या है
तोड़े तूने बेगुनाह दिल हज़ारों दफा
शरम कर जो पूछता है की वहशियत क्या है!
कल शाम से तू मेरी गली से गुजरने लगा है
अरे सच सच बता की तेरी नीयत क्या है !
टूटा है इस दफा दिल तेरा भी या छुपा कोई राज़ है
कुछ तो बता की तेरी तबियत क्या है !!
कभी पिछली गली से तेरी आवाज़ भी आ जाती थी
तो खुद पर गुरूर होने लगता था !
आज तू गले भी लगा ले तो धड़कनों पर असर नहीं होता
कैसे कहूँ की तेरे इश्क़ की अब एहमियत क्या है!!
कैफ़ियत = ज़ुस्तज़ू
- कमल पनेरू