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Monday, December 31, 2018

आखिरी तकलीफ

आज धड़कनो का शोर इतना तेज़ क्यों है मैं समझ नहीं पा रहा हूँ! क्या कहुँ  इसे? बेताबी? बेचैनी? या कोई तड़प? एक अर्से से खुद को इतना बेबस नहीं पाया था मैंने, मगर आज, साल के आखिरी दिन ऐसा लगता है मानो गम पहाड़ ही टूट पड़ा हो मुझपे! बाहर न्यू ईयर की  पार्टी का शोर है और उस शोर की चीरती हुई मेरी ख़ामोशी ने जैसे आज मेरी साँसों को बांध लिया हो! जैसे आज मैं ही मैं ना रहा! जैसे धुप ढलने के  सूरजमुखी सर झुका लेता है, कुछ यूँ ही शाम होते ही अपना सर छुपा लिया है मैंने  अपनी गोद में!
क्या मुझे इश्क़ समझ नहीं आता? या फिर दोश्ती निभाने में कोई कसार रख देता हूँ मैं? आज मानो लग रहा है की किसी मुझे निचोड़ दिया हो और बुरी तरह झंझोड़ दिया हो अंदर तलक!
आज तुम होती साथ तो लग के गले रो लेता  जी भर के मैं भी उन टूटे लोगों की तरह जिन्हें तकलीफ में एक कंधे की तलाश होती है! आज जैसे तन्हाई भी रूठी हुई हो मुझसे की इतना सूनापन मेरे अंदर छुपा है किसी रात के  अँधेरे में छुपे शहर की तरह! तुम आओ ना फिर से और निकाल दो ये डर मेरे मन से की तनहा हूँ मैं इस रात बहुत!  तुम्हारे एक तसल्ली देने भर से सब ठीक हो जाता है मेरा! मुझे उम्मीद दो ना कि मेरा नया साल अच्छा हो ठीक उसी तरह जैसे पल तुम्हारे साथ में अच्छे बीतते हैं मेरे ! 

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